Friday 10 May 2013

Shirdi sai baba Exposed Part-2


<<Shirdi sai baba Exposed Part-1


दोस्तों प्रणाम,

पिछले लेख में हमने साईं सत्चरित्र के आधार पर बाबा का सच आपके सामने रखा था जिसे कई साईं भक्तों की आंखे भी खुली परन्तु उससे भी अधिक हमें गलियां, श्राप तथा धमकियाँ आदि भी झेलनी पड़ी ।
और कुछ ने बाबा के विषय में कुछ बाते हमारे समक्ष रखी। वो हम इस लेख में ले रहे है ।

ये साईं भक्तों की भ्रांतियां मात्र है जो हमें ईमेल, फेसबुक तथा कमेंट आदि के  माध्यम से प्राप्त हुई है ।
https://www.facebook.com/Shirdi.Sai.Expose


भ्रांति १ : बाबा ने कभी स्वयं को ईश्वर नही कहा !
सत्य : बाबा ने स्वयं को अनेक बार ईश्वर, परब्रह्म कहा है ! (साईं सत्चरित्र से)

 निम्न प्रति साईं सत्चरित्र अध्याय 3 की है :-



और भी अनेकों जगह कहा है चीख चीख कर कहा है ।


भ्रांति २ : बाबा ने अपने जीवन में स्वयं को किसी किसी धर्म, पंथ से नही जोड़ा


सत्य : यदि बाबा ने स्वयं को किसी किसी धर्म से नही जोड़ा तो शिर्डी संस्थान ने उन्हें किस आधार पर हिन्दू देवी देवताओं के मध्य स्थान दिया गया है ? और फिर बाबा मुस्लिम थे इसमें मुझे कोई संदेह नही !


वो जिन्दगी भर एक मस्जिद में रहे , इस्लामी वस्त्र पहनते  थे , बकरे कटते  थे , अल्लाह मालिक कहते थे  और मृत्यु पश्चात भी इस्लामिक रितिनुसार दफ़न किया गया। क्या इससे सिद्ध नही होता की वो मुस्लिम थे ?
"एक फ़क़ीर देखा जिसके सर पर एक टोपी, तन पर कफनी और पास में एक सटका था" {अध्याय 5 }

१ मैं मस्जिद में एक बकरा हलाल करने वाला हूँ, बाबा ने शामा से कहा हाजी से पुछो उसे क्या रुचिकर होगा - "बकरे का मांस, नाध या अंडकोष ?"
-अध्याय ११

(1)मस्जिद मेँ एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया। वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था। बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 161.

(2)तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैँ स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 162.

(3)फकीरोँ के साथ वो आमिष(मांस) और मछली का सेवन करते थे।
-:अध्याय 5. व 7.

(4)कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 269.

(5)एक एकादशी के दिन उन्होँने दादा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीद लाने को दिये। दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमोँ का जीवन मेँ पालन किया करते थे।
-:अध्याय 32. पृष्ठः 270.

(6)ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दादा ने योँ ही मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है। तब बाबा कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखोँ से ही देखा है और न ही जिह्वा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मेँ डालकर बोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर देखो”।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 270.


भ्रांति ३ : बाबा ने सदेव कहा तुम अपने अपने धर्म-मजहब का ही पालन करों !

सत्य : बाबा ने स्वयं को अनेक बार ईश्वर, परब्रह्म कहा और कहा मेरा भजन कीर्तन करने व् मात्र साईं साईं पुकारने से सब पाप नष्ट हो जायेंगे !



भ्रांति ४ : बाबा का पूरा जीवन गरीबी में व्यतीत हुआ !

सत्य : बाबा बाजार से खाद्य सामग्री : आटा,दाल ,चावल, मिर्च, मसाला आदि लाते थे और इसके लिए वे किसी पर निर्भर नही रहे ! और तो और बाबा के पास घोडा भी था (अध्याय ३ ६ )

 पति पत्नी दोनों ने बाबा को प्रणाम किया और पति ने बाबा को 500 रूपये भेंट किये जो बाबा के घोड़े श्याम कर्ण के लिए छत बनाने के काम आये !    (अध्याय ३ ६  )

बाबा उस समय के अमीर व्यक्तियों में से थे !!


भ्रांति ५ : बाबा ने कहा सबका मालिक एक !
उत्तर : हम कैसे माने ? जबकि इस पुस्तक में "अल्लाह मालिक" वे कहा करते थे, लगभग हर दुसरे अध्याय में आया है !


भ्रांति ६ :बाबा का मूल मंत्र श्रधा व सबुरी !

सत्य : बाबा ने एक साधारण व्यक्ति होने पर भी स्वयं पर श्रधा रखने को कहा, सबुरी बाबा को थी ही नही !
इस पुस्तक में बाबा के रुपया पैसा लेनदेन की अनेकों बाते आयी है। जहाँ एक १ से लेकर हजारों रुपयों की चर्चा है !
{ये घटनाये 19वीं सदी की है उस समय लोगो की आय 2-3 रूपये प्रति माह हुआ करती थी ! तो हजारों रूपये कितनी बड़ी रकम हुई ??}


उस समय के लोग  2-3 रूपये प्रति माह में अपना जीवन ठीक ठाक व्यतीत करते थे !
और आज के 10,000 रूपये प्रति माह में अपना जीवन ठीक ठाक व्यतीत करते है !
तो उस समय और आज के समय में रुपयों का अनुपात (Ratio) क्या हुआ ?
 10000/3=3333.33
तो उस समय के  1000 रूपये आज के कितने के बराबर हुए ?
 1000*3333.33=33,33,330 रूपये

यदि हम यह अनुपात 3333.33 की अपेक्षा कम से कम 1000  भी माने तो :-

1000*1000= 10,00,000 रूपये

बाबा उस समय के अमीर व्यक्तियों में से थे !!


भ्रांति ७ :बाबा ने लोगों को जिना सिखाया !
सत्य : पुस्तक के अनुसार बाबा मात्र १९ वर्ष की आयु से ही बीडीयां पिया करते थे , बात बात पर क्रोधित होना व् स्त्रियों को अपशब्द कहना उनका स्वभाव था ! क्या सिख मिली ?
बाबा का चरित्र पढ़ कर मुझे तो लगा की यदि साईं भक्त चिलम,बीडी,तम्बाकू का सेवन करें, स्त्रियों पर चिल्लाये तथा अपशब्द कहे , बेगुनाह बेजुबान जीवों को मर कर खा जाएँ , और किसी को बल पूर्वक उसकी इच्छा के विरुद्ध मांस खिला  दें तो कोई पाप नही ..क्यू की उनके आराध्य साईं भी ऐसा ही किया करते थे ..

भ्रांति ८  :बाबा ने अनेकों चमत्कार किये !
सत्य : जो भी चमत्कारों के किस्से है वो केवल शिर्डी के ही है, वे अपने जीवन में शिर्डी से बाहर नही गये , फिर ऐसा व्यक्ति पुरे भारत में पूजे जाने का क्या हक़ रखता है ?

पानी से दिया जलाते ही भगवान बन गये ? किसने देखा पानी से दिया जलाते हुए ?
१२वी के केमिस्ट्री के विधार्थी भी पानी में आग लगा देते है, भगवान बन गये वो ?
भारत वर्ष में पूजा चमत्कारों की नही चरित्र की होती है .. चरित्र जानने के लिए पीछला लेख पढ़े ।

भ्रांति ९ : बाबा सारी उम्र लोगो के लिए जिए ।
सत्य : शास्त्रों के अनुसार देश, समाज की सेवा करने के लिए स्वयं का स्वस्थ होना परम आवश्यक है .
"पहला सुख निरोगी काया"

बाबा जीवन में अधिकतर बीमार रहे ..

बाबा का जीवन १ ८ ३ ८ से १ ९ १ ८ ..


बाबा की स्थति चिंता जनक हो गई और ऐसा दिखने लगा की वे अब देह त्याग देंगे ! {अध्याय ३९}
ये घटना कब की है, लेखक ने सन नही लिखा है । 

सन 1886 (उम्र 48 वर्ष) में मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन बाबा को दमा से अधिक पीड़ा हुई और उन्होंने अपने भगत म्हालसापति को कहा तुम मेरे शरीर की तिन दिन तक रक्षा करना यदि में  वापस लौट आया तो ठीक, नही तो मुझे उस स्थान (एक स्थान को इंगित करते हुए) पर मेरी समाधी बना देना और दो ध्वजाएं चिन्ह रूप में फेहरा देना ! {अध्याय 43}

28 सितम्बर 1918 को बाबा को साधारण-सा  ज्वर आया । ज्वर 2 3 दिन रहा । बाबा ने भोजन करना त्याग दिया । इसे साथ ही उनका शरीर दिन प्रति दिन क्षीण व दुर्बल होने लगा । 17 दिनों के पश्चात अर्थात 14 अक्तूबर 1918 को को 2 बजकर 30 मिनिट पर उन्होंने अपना शरीर त्याग किया !{अध्याय 42 }

इस प्रकार बाबा बीमारी से दो बार मरते मरते बचे और तीसरी बार में मर ही गये ..

इस पुस्तक में बार बार समाधी/महासमाधी/समाधिस्त  शब्द आया है किन्तु बाबा की मृत्यु दमे व बुखार से हुई ! बाद में दफन किया गया  अतः उस स्थान को समाधी नही कब्र कहा जायेगा !!

समाधी स्वइच्छा देहत्याग को कहते है !

कब्र में जो मुर्दा गडा होता है उसे पूजने का एक भी कारण मुझे समझ नही आता ..
मृत्यु पश्चात उस जिव की आत्मा अपने कर्मो के अनुसार सदगति अथवा अधमगति को प्राप्त होती है, अब शेष रहा उसका निर्जीव शव जो भूमि में कीड़ो द्वारा खाया जाता है , अब शेष बचा कंकाल ।।
कोई कंकाल आपकी मनोकामना पूरी कैसे कर सकता है ? कंकाल की पूजा अर्थात भुत की पूजा !! 

श्री कृष्ण ने गीता जी के ९ वे अध्याय में क्या कहा है जरा देखें, गौर से देखे :-
यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपिमाम् .... गीता ९/२५ 

अर्थात 
देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते है, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते है। 
भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते है, और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझे ही प्राप्त होते है ॥ 
................इसलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नही होता !!

भूत प्रेत, मूर्दा (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत-प्रेत ही बनते हैं.!

मेरे मतानुसार श्री कृष्ण जानते थे की कलियुग में मनुष्य मतिभ्रमित हो कर मुर्दों को पूजेंगे इसीलिए उन्होंने अर्जुन को ये उपदेश दिया अन्यथा गीता कहते समय वे युद्ध भूमि में थे और युद्ध भूमि में  ऐसा उपदेश देने का क्या अभिप्राय ?
शिर्डी के मुख्य द्वार पर साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियां की कब्र। TOMB OF CHAND MIYAN
                                 

यही वो  साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियां की कब्र है जहाँ आप माथा पटकने जाते है !
बाबा का शरीर अब वहीँ विश्रांति पा  रहा है , और फ़िलहाल वह समाधी मंदिर नाम से विख्यात है {अध्याय 4}
ये तो हुई समाज के बात। !

अब देश की बात :
सत्य तो ये है की बाबा को पता ही नही था शिर्डी के बाहर हो क्या रहा है ? 
एक और राहता (दक्षिण में) तथा दूसरी और नीमगाँव (उत्तर में) थे । बिच में था शिर्डी । बाबा अपने जीवन काल में इन सीमाओं से बहार नही गये (अध्याय 8)

एक और पूरा देश अंग्रेजों से त्रस्त था पुरे देश से सभी जन समय   समय   अंग्रेजों के विरुद्ध होते रहे, पिटते रहे , मरते रहे ।  और बाबा है की इस सीमाओं से पार भी नही गये । 
और नाही अपने अनुयायियों को इसके लिए प्रेरित किया , जबकि इस पुस्तक के अनुसार बाबा के अनुयायियों की कोई कमी नही थी ..
बाबा स्वयं को पुजवाने के बड़े शोखीन थे।। बाबा के भक्त बाबा के उनकी पूजा करते थे और बाबा पूजा करवाते थे देश गया भट्ठी में ..
बाबा के मृत्यु उपरांत का वर्णन :
बाबा ने म्हालसापति को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा सब सोच रहे है की मेरी तो मृत्यु हो चुकी है कोई आयेगा नही .. तुम उठो और मेरी कक्कड़ आरती करों ..(अध्याय ४ ८ )

वाह !!!


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साईं भक्तों के प्रश्न :
प्रश्न १  : यदि साईं सत्चरित्र में ऐसा ऐसा लिखा है तो इसमें बाबा का क्या दोष ?

उत्तर : लेखक  "हेमाडपंत" ने लिखा है की 1910 में मैं बाबा से मिलने मस्जिद गया ! (अध्याय १ )
मेने बाबा की पवित्र जीवन गाथा का लेखन प्रारंभ कर दिया (अध्याय २  )
 और बाबा से उनके जीवन पर किताब लिखने की अनुमति मांगी !
और मैंने महाकव्य "साईं सच्चरित्र" की रचना भी की ! अर्थात साईं सच्चरित्र की रचना सन 1910 में की !
 (अध्याय २ )
ये पुस्तक बाबा की अनुमति से ही लिखी गई !
ये पुस्तक शिर्डी साईं संस्थान, शिर्डी द्वारा प्रमाणित है , १५  भाषाओँ में लिखी जा चुकी है .
निम्न फोटो शिर्डी साईं संस्थान वेबसाइट की है :
https://www.shrisaibabasansthan.org/INDEX.HTML


यदि इस पुस्तक को ही नकार दिया जाये तो बाबा का क्या प्रमाण शेष बचता है ? साईं नाम का कोई हुआ था भी या नही ? कैसे पता चलेगा ?
मुझे यदि बाबा को जानना है तो मुझे इसी पुस्तक पर निर्भर होना पढ़ेगा और फिर लेखक ने इसे महाकव्य की संज्ञा दी है


प्रश्न २   : पुराणों और हिन्दू ग्रंथों में साईं का नाम नही तो क्या हुआ ? वेदों में  ब्रह्मा, विष्णु और महेश का नाम नही . तो क्या हम उन्हें भी नही माने ?

उत्तर :
स ब्रह्मा स विष्णु : स रुद्रस्य शिवस्सोअक्षरस्स परम: स्वरातट । -केवल्य उपनिषत १.८

सब जगत के बनाने से ब्रह्मा , सर्वत्र व्यापक होने से विष्णु , दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से रूद्र , मंगलमय और सबका कल्याणकर्ता होने से शिव है ।
-सत्यार्थ प्रकाश पेज १६ , स्वामी दयानंद सरस्वती

योअखिलं जगन्निर्माणे बर्हती वर्द्धयति स ब्रह्मा
जो सम्पूर्ण जगत को रच के बढाता है , इसलिए परमेश्वर का नाम ब्रह्मा है
-पेज २ ६

वेवेष्टि व्यप्रोती चराचरम जगत स विष्णु: परमात्मा
चर और अचररूप जगत में व्यापक होने से  परमात्मा का नाम विष्णु है ।
-पेज २ १

यः शं कल्याणं सुखं करोति स शंकरः
जो कल्याण अर्थात सुख करनेहारा है, इससे शंकर नाम ईश्वर का है ।
-पेज २ ९

यो महतां देवः स महादेव:
जो महान देवों का देव अर्थात विद्वानों का भी विद्वान, सुर्यादी पदार्थों का प्रकाशक है , इसलिए परमात्मा का नाम महादेव है ।
-पेज २ ९

शिवु कल्याणे
जो कल्याणस्वरुप और कल्याण का करनेहारा है इसलिए परमात्मा का नाम शिव है ।
-पेज ३ ०

इसी प्रकार देवी,शक्ति,श्री,लक्ष्मी,सरस्वती तथा गणपति व्  गणेश  पेज २ ७ -२ ८ पर है ।

साभार: सत्यार्थ प्रकाश, स्वामी दयानंद सरस्वती

यदि इन नामों पर साईं अंधभक्तों को विश्वास नही तो फिर साईं को इनके नाम के सहारे क्यू चलाया जा रहा है ?  क्यू की साईं की खुद की तो कोई ओकात ही नही , बेचारे की ।

साईं का नाम साईं सत्चरित्र के अतिरिक्त कहीं भी नही है ।
पता है क्यू ??

क्यू की साईं कोई नाम नही ।

साईं शब्द का अर्थ :--
"साईं बाबा नाम की उत्पत्ति साईं शब्द से हुई है, जो मुसलमानों द्वारा प्रयुक्त फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है पूज्य व्यक्ति और बाबा"
यहाँ देखे :---
http://bharatdiscovery.org/india/शिरडी_साईं_बाबा
फ़ारसी एक भाषा है जो ईरान, ताज़िकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और उज़बेकिस्तान में बोली जाती है।

अर्थात साईं नाम(संज्ञा/noun) नही है ! जिस प्रकार मंदिर में पूजा आदि करने वाले व्यक्ति को "पुजारी" कहा जाता है परन्तु पुजारी उसका नाम नही है !
यहाँ साईं भी नाम नही अपितु विशेषण (Adjective) है !
उसी प्रकार 'बाबा' शब्द  भी कोई नाम नही !!

सभी साईं बाबा ही कहते है तो फिर इसका नाम क्या है ??

चाँद मियां !!!

हमारा उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाएं भड़काना नहीं, अपितु ईश्वर की आड़ में किये जा रहे साईं पाखंड का सत्य लोगो तक पहुँचाना है ।

<<Shirdi sai baba Exposed Part-1
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ॐ नमः शिवाय । 

4 comments:

  1. I would like to clear that messed up mind of yours. Before letting ahamkara inside, sit and read Satcharitra calmly, trusting Mahesh. All your doubts will be cleared. I would like to place 1 point- if Baba was really frauding God, why were all the Mighty Deities quite? Also, his omnipresence and might can be seen in 1st and 2nd chapters as baba destroyed cholera and heard Hemadpanth's debate.

    By- A SAIDASA

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  2. I wud like to answer the 'bhranthi 2'
    Baba was born to a hindu and later handed over to a muslim. He knew of all religions, but opted to follow none. He believed in all gods, Krishna, Allah, Jesus, and gave his devotees visions according to their faith. He read Quran, Gita and Bible. PEOPLE GAVE HIM RELIGION, NOT HIMSELF!!!!

    That Masjid, Dwarkamai, was empty and abandoned, ready to house Baba. That khafni, muslim cloth, was given by his guru Venuska. He lived by begging for food and he knew no taste. He accepted everything, be it veg or not, for he considered that to be given by god. Coming to Allah Malik, he had spent more time with his Muslim parents and liked the custom of ONE GOD. He also worshipped Rama. Coming to his burial, it was his devotees idea to preserve his body and He had no objections.

    About sacrificing the goat, the animal was already sick and old. Baba did this only to check his devotees faith and devotion in Him.

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    1. तो साईँ सिर्फ कुरान ही क्यूँ पढता था?
      मस्जिद में ही क्यूँ रहता था?
      हलाल ही क्यूँ करता था मुल्लों की तरह? झटके से मारना चाहिए था बकरे को हिन्दू की तरह।
      समाधी बनवानी ही थी तो जला कर बची हुई राख पर समाधी बनने के लिए क्यों नही बोला मरने से पहले? साईं ने कहा की दफन कर देना।

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    2. Don't bluff anything he was not born by human parentage

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